Rajasthan Highcourt
Ankit Garg Vs State of Rajasthan
इस मामले में पत्नी के द्वारा पति और पति के घर वालों के विरुद्ध धारा 498A आईपीसी और अन्य धाराओं में आपराधिक मुकदमा दर्ज कराया जाता है ।
पुलिस छानबीन करती है और उसके पश्चात कोर्ट में आरोपित प्रेषित करती है।
मामले का संज्ञान होने के बाद पति पक्ष राजस्थान हाई कोर्ट में 482 सीआरपीसी के तहत मामले को रद्द करने के लिए प्रार्थना पत्र दाखिल करता है जिसमें पतिपक्ष के तरफ से यह तर्क रखा जाता है कि पत्नी ने पहले हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत दांपत्य अधिकारों के पुनर्स्थापना हेतु वाद दायर कराया और पति ने क्रूरता के आधार पर विवाह विच्छेद के लिए मुकदमा दायर किया और पत्नी अपने आपराधिक मुकदमे में जो भी आरोप लगा रही है वह सभी आरोप 2 साल पुरानी है साथ ही साथ जो उसने अपना दांपत्य अधिकारों के पुनर्स्थापना का वाद दायर किया है उसमें जो वह आपराधिक मुकदमे में आरोप लगे हैं उन आरोपों में से किसी आरोप का कोई जिक्र नहीं है जिरह में भी उसने कहा है कि उससे दहेज नहीं मांगा गया ।
तो 2 साल की देरी से पत्नी ने यह मुकदमा सिर्फ प्रतिशोध लेने के लिए दर्ज कराया है और देरी क्यों हुई है इसका उचित कारण नहीं बताया है इस कारण से मुकदमे को रद्द किया जाए ।
पत्नी पक्ष ने पति के प्रार्थना पत्र का विरोध किया और कहा कि उसे दहेज मांगा गया उसे परेशान किया गया और उन पति के प्रार्थना पत्र को खारिज किया जाए ।
कोर्ट दोनों पक्षों की सुनने के बाद यह निर्णय देता है की पत्नी ने अपने विदाई के दावे में किसी प्रकार का कोई दहेज की मांग की बात नहीं किया ना हीं जिरह में उसने इस प्रकार का कोई आरोप लगाया, 2 साल के बाद अब उसका कहना है कि उसे दहेज मांगा गया उसे प्रताड़ित किया गया तो 2 साल तक वह कहां थी उसने कोई मुकदमा क्यों नहीं दर्ज कराया इसका भी कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं दिया
इस कारण से यह प्रतीत होता है कि यह मामला प्रतिशोध लेने के लिए दर्ज कराया गया है और ऐसे मामले को रद्द किया जाना चाहिए ।
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