हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 11-
शून्य विवाह-
इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् अनुष्ठापित कोई भी विवाह, यदि वह धारा 5 के खण्ड (I) , (IV) और (V) में विनिर्दिष्ट शर्तों में से किसी एक का भी उल्लंघन करता हो तो , अकृत और शून्य होगा और विवाह के किसी पक्षकार द्वारा ( दूसरे पक्षकार के विरुद्ध ) उपस्थापित अर्जी पर अकृतता की डिक्री द्वारा ऐसा घोषित किया जा सकेगा ।
हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 12 :-
शून्यकरणीय विवाह -
(1) कोई भी विवाह , वह इस अधिनियम के प्रारम्भ के चाहे पूर्व अनुष्ठापित हुआ हो चाहे पश्चात् , निम्नलिखित आधारों में से किसी पर भी शून्यकरणीय होगा और अकृतता की डिक्री द्वारा बातिल किया जा सकेगा : -
(क) कि प्रत्यर्थी की नपुंसकता के कारण विवाहोत्तर संभोग नहीं हुआ है या
(ख) कि विवाह धारा 5 के खण्ड (II) में विनिर्दिष्ट शर्तों का उल्लंघन करता है या
(ग) कि अर्जीदार की सम्मत्ति या , जहां कि (धारा 5 जिस रूप में बाल विवाह अवरोध (संशोधन) अधिनियम, 1978 (1978 का 2) के प्रारम्भ के ठीक पूर्व विद्यमान थी उस रूप में उसके अधीन अर्जीदार के विवाहार्थ संरक्षक की सम्मत्ति अपेक्षित हो) वहां ऐसे संरक्षक की सम्पत्ति , बल प्रयोग द्वारा ( या कर्मकाण्ड की प्रकृति के बारे में या प्रत्यर्थी से संबंधित किसी तात्त्विक तथ्य या परिस्थिति के बारे में कपट द्वाराट अभिप्राप्त की गई थी ।
या
(घ) कि प्रत्यर्थी विवाह के समय अर्जीदार से भिन्न किसी व्यक्ति द्वारा गर्भवती थी ।
(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी , विवाह के बातिलीकरण की कोई अर्जी -
(क) उपधारा (1) के खण्ड (ग) में विनिर्दिष्ट आधार पर ग्रहण न की जाएगी, यदि-
(I) अर्जी , यथास्थिति , बल प्रयोग के प्रवर्तनहीन हो जाने या कपट का पता चल जाने के एकाधिक वर्ष के पश्चात् दी जाए ।
या
(II) अर्जीदार , यथास्थिति , बल प्रयोग के प्रवर्तनहीन हो जाने के या कपट का पता चल जाने के पश्चात् विवाह के दूसरे पक्षकार के साथ अपनी पूर्ण सम्मत्ति से पति या पत्नी के रूप में रहा या रही है ।
(ख) उपधारा (1) के खण्ड (घ) में विनिर्दिष्ट आधार पर तब तक ग्रहण न की जाएगी जब तक कि न्यायालय का यह समाधान न हो जाए कि-
(I) अर्जीदार विवाह के समय अभिकथित तथ्यों से अनीभज्ञ था
(II) कार्यवाही , इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व अनुष्ठापित विवाह की दशा में , ऐसे प्रारम्भ के एक वर्ष के भीतर और ऐसे प्रारम्भ के पश्चात् अनुष्ठापित विवाहों की दशा में , विवाह की तारीख से एक वर्ष के भीतर संस्थित की गई है और
(III) (उक्त आधार)के अस्तित्व का अर्जीदार को पता चलने के समय से अर्जीदार की सम्मति से कोई वैवाहिक संभोग नहीं हुआ है ।
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