जब भी कोई महिला अपने पति से भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए 125 Crpc के अंतर्गत मेंटेनेंस केस डालती है तो उस केस में महिला खुद के प्रति काफी बातें झूठी लिखवा देती है जैसे कि यदि वह महिला कहीं कार्यरत है और उसके पास आय के स्रोत हैं तो भी वह खुद को गृहणी, असहाय और उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है ऐसा लिखवा देती है या फिर ऐसे ही तमाम झूठ बोल देती है ।
लेकिन यदि कोई व्यक्ति कोर्ट की कार्यवाही में झूठ बोलता है, झूठा शपथ पत्र देता है या फिर वह सच बोलने के लिए बाध्य है तो भी झूठ बोलता है या झूठे साक्ष्य देता है तो यह सारे कृत्य को अपराध बताया गया है और इसके लिए सजा का भी प्रावधान किया गया है और यदि कोई व्यक्ति ऐसा कर देता है तो कोर्ट उसके ऊपर 340 सीआरपीसी के अंतर्गत कार्यवाही करता है और मुकदमा दर्ज कराता है ।
यहां एक जजमेंट के बारे में बताया गया है जिसमें पत्नी ने 125 सीआरपीसी यानी मेंटेनेंस केस में झूठ बोला था और इसके वजह से उसके ऊपर कोर्ट ने 340 सीआरपीसी का कार्यवाही किया और उसके ऊपर भारतीय दंड संहिता की धारा 191, 192, 193 के तहत मुकदमा दर्ज कराया ।
इस मामले में याचिकाकर्ता की पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आवेदन कर अपने और अपने बेटे के भरण-पोषण की मांग की थी ।
उसने एक शपथपत्र प्रस्तुत किया था, जिसमें उसने खुद को एक गृहिणी घोषित किया था, जिसके पास आय का कोई स्रोत नहीं था ।
बाद में, उसके पति ने निचली अदालत में एक आवेदन दायर कर कहा कि उसकी पत्नी 40,000 रुपये प्रतिमाह कमा रही है और शपथ पर झूठे सबूत पेश किए थे ।
निचली अदालत ने तदनुसार, दंड संहिता की धारा 191, 192 और 193 के तहत अपराध करने के लिए सीआरपीसी की धारा 195 के साथ पठित धारा 340 के तहत पत्नी के खिलाफ मुकदमा चलाने का निर्देश दिया।
फिर पत्नी ने उच्च न्यायालय में इस आदेश के खिलाफ अपील किया उच्च न्यायालय ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 340 के तहत कार्रवाई की जा सकती है जब यह न्याय के हित में उचित हो , और महिला-केंद्रित कानूनों के दुरुपयोग से न्याय प्रशासन पर प्रभाव से ट्रायल कोर्ट को निर्देश देना उचित होगा ।
कोर्ट ने आगे कहा कि ट्रायल कोर्ट ने कानून पर विस्तार से चर्चा की और उक्त कानून को तथ्यों पर लागू किया ताकि यह माना जा सके कि याचिकाकर्ता ने शपथ पर सही तथ्य नहीं बताए हैं।
और कोर्ट ने कहाँ की एक पत्नी पूरी तरह से गलत तथ्यों की घोषणा करके महिला केंद्रित कानूनों का दुरुपयोग करती है, तो ट्रायल कोर्ट मामले में विचार करते समय आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 340 के तहत मुकदमा चलाने का निर्देश दे सकती हैं।
इसलिए कोर्ट ने आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया ।
इस जजमेंट को डाउनलोड करने के लिये यहाँ क्लिक करे ।
Whatsapp no. - 9305583885
0 Comments