मेरा नाम अमित है और मैं उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूं मेरी पत्नी बिहार की रहने वाली है मेरी शादी जनवरी 2016 में हुई थी और मेरी पत्नी कुछ दिनों तक मेरे साथ सही ढंग से रही और उसके बाद वह काफी बदल गई और बात बात पर गुस्सा , लड़ाई - झगड़े और मायके जाने लगी ।
मार्च 2017 में वह अपने मायके गई और मुझे धमकी देकर गई कि वह मेरे ऊपर केस दर्ज कराएगी उसके बाद में काफी ज्यादा परेशान हो गया और मैं केस से बचने का उपाय ढूंढने लगा फिर मैंने एक तरीका आजमाया जिससे मुझे काफी ज्यादा सफलता मिली मैंने तुरंत जाकर हिंदू मैरिज एक्ट के धारा 9 का केस अपनी पत्नी के ऊपर दर्ज कराया और जब हिंदू मैरिज एक्ट सेक्सन 9 का नोटिस मेरी पत्नी को गया तो उसने मेरे ऊपर कोर्ट से मेंटेनेंस का केस कर दिया और थाने में मेरे ऊपर कंप्लेन कर दिया ।
फिर मैं थाने गया और वहां हमारा मेडिएशन हुआ जहां सारी गलती मेरी पत्नी की निकली इसके बाद थाने में मेरी पत्नी का FIR लिखने से मना कर दिया गया चुकी मैंने पुलिस वालों से कुछ सेटिंग की थी वह आप लोग समझ सकते हैं मुझे बताने की कोई आवश्यकता नहीं है जिस कारण से यह संभव हो पाया अब सिर्फ उसका मेंटेनेंस केस रह गया था ।
लेकिन उसने मेरे ऊपर डोमेस्टिक वायलेंस का केस कोर्ट से दर्ज करा दिया इसका भी मुझे नोटिस प्राप्त हुआ लेकिन मैं अपनी पत्नी के मुकदमों में कभी नहीं गया जिस वजह से मेरी पत्नी भी section 9 के केस में कभी नहीं आई क्योंकि उसे लगा कि जब मेरा पति मेरे केस में नहीं आ रहा है तो मैं क्या करने जाऊं ।
ऐसे 3 माह बीत गया और फिर मैं हाई कोर्ट में अपने सेक्शन 9 के केस के लिए स्पीडी ट्रायल का एप्लीकेशन लगाया और हाईकोर्ट से यह आदेश हुआ कि मेरे केस का निपटारा 6 माह के अंदर कर दिया जाए और इस प्रकार से मुझे 8 माह में Hindu marriage act section 9 की डिग्री मिल गई।
मैं अब भी अपनी पत्नी के मेंटेनेंस केस में और DV के केस में हाजिर नहीं हुआ था बस एक साइड से पता लगा रहा था कि उसके केस में अभी क्या चल रहा है उसके केस में अभी तक कोई एक्स पार्टी नहीं हुई थी अभी उसका केस पेंडिंग ही था ।
मुझे सेक्शन नाइन की डिग्री मिल जाने के बाद मैं 3 माह के बाद डाइवोर्स लेने के लिए Divorce Case कर दिया क्योंकि मुझे यह बात भी पता थी कि हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन नाइन के डिग्री के 1 साल बीत जाने के बाद ही वह डाइवोर्स का आधार बनता है यदि उसका पालन नहीं किया जाता है तब लेकिन मैंने केस कर दिया क्योंकि डायवोर्स केस चलते-चलते सेक्शन नाइन की डिग्री 1 साल पुरानी हो जाती और एक अभित्यजन भी आधार हो जाता कि मेरी पत्नी 2 वर्षों से बिना कारण ही मुझसे अलग रह रही है और मैंने उसे बुलाने का भी प्रयास किया और वह नहीं आई तो यह 2 आधार पक्के थे तो इस कारण से मैंने इन 2 आधारों के साथ हिंसा का आधार भी को जोड़कर कुल तीन आधारों पर डाइवोर्स लेने के लिए केस किया ।
मेरी वाइफ को नोटिस गया लेकिन वह नहीं आई उसके बाद मेरा केस ऐसे ही 1 साल तक चलता रहा जज साहब चार बार नोटिस भेजवाये उसके बाद पेपर में भी गजट कराने के लिए बोले वह सब मैंने किया उसके बाद एकपक्षी कार्यवाही करने के लिए एप्लीकेशन दिया लेकिन मेरे एप्लीकेशन पर कोई सुनवाई नहीं हुई और पेंडिग ही रहा, फिर मुझे पता चला कि कोर्ट डाइवोर्स की डिक्री देने में आनाकानी करता है।
अब यह सब होते-होते मेरी सेक्शन नाइन की डिक्री भी 1 साल पुरानी हो गई थी और मेरी पत्नी 2 वर्षों से बिना कारण ही मुझसे अलग रह रही थी तो इन दो डाइवोर्स के ग्राउंड का मेरे पास सबूत हो गया था जो सेक्टर 9 की डिग्री था ।
उधर मेरी पत्नी का मेंटेनेंस केस एकपक्षी हो गया था जिसमें ₹4000 प्रतिमाह आदेश हुआ था । इसके बावजूद भी मैं वहां एक बार भी नहीं गया था ।
फिर मैं डायवोर्स केस में स्पीडी ट्रायल के लिए हाईकोर्ट में एप्लीकेशन दिया और वहां से मुझे 6 माह का टाइम बाउंड का आदेश हुआ कि 6 माह में मेरे डायवोर्स केस का निपटारा कर दिया जाए, अब यहां फैमिली कोर्ट में स्पीडी ट्रायल मिल जाने के बाद मेरा केस जल्दी-जल्दी चलने लगा और जज साहब ने एक्सपार्टी प्रोसीडिंग कर दिया, सबूत के तौर पर मैंने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 की डिक्री दिया जिससे यह साबित हुआ कि मेरी पत्नी बिना किसी कारण के 2 वर्षों से मुझसे अलग रह रही है और सेक्शन नाइन की डिक्री का मेरी पत्नी ने 1 साल तक पालन नहीं किया था यह भी एक आधार बन गया और हिंसा को मैं कोर्ट में साबित नहीं कर पाया लेकिन मेरे दो ग्राउंड सिद्ध हो गए कोर्ट में और इस आधार पर मुझे डाइवोर्स की डिक्री मिल गई ।
फिर मैं अपनी पत्नी का मेंटेनेंस किसके आदेश की पक्की नकल निकलवा कर हाई कोर्ट पटना में अपील किया और सबूत के तौर पर सेक्शन 9 की डिक्री और डाइवोर्स की डिक्री लगाई जिससे हाईकोर्ट ने यह सिद्ध हुआ कि मेरी पत्नी बिना कारण के ही मुझ से अलग रह रही है और नियमतः जो पत्नी बिना किसी कारण के अपने पति से अलग रहती है वह भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं होती है ।
तो हाईकोर्ट ने मेरी पत्नी का मेंटेनेंस बंद कर दिया और जो बकाया मेंटेनेंस था उसे भी माफ कर दिया और उसके बाद डोमेस्टिक वायलेंस के केस में भी मैं क्वेसिंग के लिए एप्लीकेशन दिया और हाईकोर्ट ने मेरी पत्नी का डोमेस्टिक वायलेंस के केस को भी क्वेश कर दिया और इस प्रकार से मैं इन झूठे केसों से बाहर निकल पाया और मुझे डाइवोर्स भी नहीं मिल गया ।
मुझे कुछ दिक्कत तो हुआ और समय तो लगा लेकिन सफलता अंत में मुझे ही मिली मुझे अब डायवोर्स भी मिल गया और मेंटेनेंस भी नहीं देना पड़ा ।
इस प्रकार से मेरी पत्नी के मंसूबों पर पानी भी फिर गया और मैं झूठे केसों से बरी भी हो गया ।
आशा करता हूं आपको यह स्टोरी पसंद आई होगी और जो लोग भी झूठे केसों से पीड़ित हैं उन लोगों को मेरी इस स्टोरी से काफी ज्यादा जानकारी प्राप्त होगा और न्याय मिलने में मदद होगा ।
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