498A में पति के परिवारवालो को फसाने की प्रवित्ति बढ़ती जा रही है :- Bombay HC

वर्तमान समय मे पत्नियो के द्वारा पति के परिवार के प्रत्येक सदस्य के खिलाफ 498A में अस्पष्ट आरोप लगाना एक आम प्रवृत्ति बन गई है ।


ऐसी टिप्पणी Bombay High Court ने एक धारा 498A के मामले में किया है जिसमे एक महिला ने अपने पति के परिवार के सदस्यों का नाम डाला था और अस्पष्ट आरोप लगाया था ।


मामला क्या है जानिये ?


सितंबर 2012, में शबनम, उनके पति आरिफ और शबनम की बहन शमां के खिलाफ सकरदरारा पुलिस स्टेशन में IPC की धारा 498A के तहत FIR दर्ज कराया गया था ।

यह आरोप शबनम के भाई की डॉ शब्बीर की पत्नी डॉ कौसर ने लगाया था ।

माता - पिता से अलग रहने को पत्नी के द्वारा बोलना पति के साथ होगी हिंसा

जिसके खिलाफ शबनम , आरिफ और शमा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत हाई कोर्ट में याचिका डाली, याचिकाकर्ता शबनम , आरिफ और शमा के वकील ने कोर्ट में  तर्क दिया कि FIR में यह कहीं भी नहीं लिखा है कि याचीयो के द्वारा शिकायकर्ता को दहेज के लिए प्रताड़ित किया जा रहा था बल्कि इस मामले में 2 याचीकाकर्ता अपने अलग घर में रह रहे थे और उनका शिकायर्ता से कोई मतलब ही नहीं था ।


IPC section 498A कि FIR को हाई कोर्ट ने किया निरस्त 

हाईकोर्ट ने देखा कि शिकायतकर्ता को यह धमकी दी गयी थी कि पति के परिवार वाले पुलिस और अन्य विभागों में उच्च अधिकारियों के साथ संबंध  रखते है और यह ताना मारा गया था कि उसका पति शिक्षित होने के बावजूद किसी लायक नहीं है ।


उच्च न्यायालय ने कहा कि यहां बयान स्पष्ट नही हो रहे और अस्पष्ट बयानों और ताने को एक विवाहित स्त्री के प्रति क्रूरता नहीं कहा जा सकता है , 

जैसा कि IPC की धारा 498A के तहत दिया गया है ।


बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने  सागर सूरी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में निर्णय में कहा है कि :- 

आपराधिक न्याय प्रणाली को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने और व्यक्तिगत दुश्मनी निपटाने के लिए उपयोग नहीं करना चाहिए यह गलत है ।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में , बहनों और बहनोई को बिना किसी आरोप के ही IPC की धारा 498A के मुकदमें आरोपी बना दिया गया था ।

FIR और चार्जशीट को पढ़ने पर , हाईकोर्ट ने कहा कि वर्तमान आवेदकों के खिलाफ कोई आरोप नहीं बन रहा हैं जो उनके खिलाफ कथित अपराध का गठन करते हैं और इसलिए अब इन लोगो के खिलाफ कार्यवाहियो की निरंतरता कानून प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा और बॉम्बे हाईकोर्ट को FIR को Cr.P. C. की धारा 482 के तहत निरस्त कर दिया ।



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