कोलकाता उच्च न्यायालय
तमोघना पाकराशी व अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य
इस मामले में उच्च न्यायालय ने पति के खिलाफ धारा 498A आईपीसी और अन्य धाराओं में दर्ज शिकायत को फर्जी तरीके से रद्द करने का आदेश दिया है।
इस मामले में जो पत्नी होती है, उसका पति जो की फौज में नौकरी कर रहा है और उसकी बड़ी सास के खिलाफ आरोप लगता है कि वह लोग उसे मरते पीते थे, दही मांगते थे, नाचते थे और उसकी स्त्री धन की रक्षा करती थी और इस कारण से थानेदार पति सास व ससुर के खिलाफ आपराधिक एफआईआर दर्ज होता है। पुलिस अपना अन्वेषण करती है और उसके पीड़ित पति और उसके घर वाले मामले को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय में प्रार्थना पत्र भेजती है।
पति के तरफ से यह तर्क रखा जाता है कि जो पति और पत्नी है, उनकी शादी 2012 में हुई थी और पांचवी वर्षगांठ पर जो पत्नी थी अपनी मर्जी से पति का घर छोड़कर चली गई और 2017 से अलग रह रही है। घर छोड़कर जाने के लगभग 3 साल बाद और पति द्वारा विवाह विच्छेद का मुकदमा दर्ज करने के 1 साल बाद पत्नी ने अपना यह धारा 498 ए आईपीसी और अन्य धाराओं में आपराधिक मुकदमा फर्जी आरोप के तहत दर्ज किया है। पत्नी ने प्रतिशोध लेने के लिए और दबाव बनाने के लिए अपना यह फर्जी आरोप लगाकर मुकदमा दर्ज किया है जिसे रद्द कर दिया जाए, पत्नी की तरफ से पति के प्रार्थना पत्र को खारिज करने की मांग की जाती है।
जब न्यायालय ने पूरे मामले को देखा तो न्यायालय यही पता लगाता है कि पत्नी 2017 से अलग रह रही है और 2020 में वह अपना मुकदमा दर्ज कराती है, तब भी जब पति का विवाह टूटने का मुकदमा चलते 1 वर्ष बीत जाता है तो ऐसे में देरी क्यों हुई इसका भी उचित कारण नहीं बताया गया है और पत्नी ने जो अपनी स्त्रीधन के संबंध में बताया था उसमें उसे कोई भी चीज प्राप्त नहीं हुई है, न ही जो आरोप लगे हैं उनके आधार पर प्रथम दृष्टिया मामला बन रहा है वह स्पष्ट आरोप नहीं है तो ऐसे में पति के द्वारा निभाए गए उक्त आधारों पर यह मुकदमा रद्द किया जाना न्याय हित में आवश्यक है और न्यायालय पत्नी के द्वारा दर्ज किए गए शिकायतों को रद्द कर देता है।
1 Comments
Great Sir. We are also facing this case and she filed FIR on 25 Jun 2024.
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