कर्नाटक उच्च न्यायालय
मल्लिनाथ बनाम कर्नाटक राज्य
इस मामले में उच्च न्यायालय पति को इस आधार पर अनमोचित कर देता है की पत्नी ने आरोप लगाया था कि उसका गला दबाकर उसकी हत्या करने का प्रयास किया लेकिन पति के पास इस संबंध में किसी प्रकार का कोई मेडिकल रिपोर्ट नहीं था नहीं उसके गले पर कोई निशान था साथ ही साथ पत्नी के पास कोई भी स्वतंत्र साक्षी नहीं था ।
इस मामले में पति अनमोचित होने के लिए सत्र न्यायालय में प्रार्थना पत्र दायर करता है जिसे सत्र न्यायालय खारिज कर देता है उसकी अपील में पति उच्च न्यायालय में जाता है ।
पत्नी आरोप लगाती है कि उसे दहेज मांगा गया उसे परेशान किया गया उसे जान से करने का प्रयास किया गया उसे प्रताड़ित किया गया और इन सब आरोपी के आधार पर पत्नी धारा 498A , 307 आईपीसी और अन्य धाराओं में आपराधिक मुकदमा दर्ज कराती है।
आप पत्रदार होने के बाद पति संज्ञान के बाद अनमोचित होने के लिए 227 सीआरपीसी में प्रार्थना पत्र दायर करता है लेकिन सत्र न्यायाधीश के द्वारा यह करते हुए कि उसके विरुद्ध प्रथम दृष्टि या मामला बन रहा है उसके अनमोचन प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया जाता है ।
पति उच्च न्यायालय में अपना पक्ष रखना है जिसमें वह बताता है कि उसने पत्नी के विरुद्ध हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के अंतर्गत दांपत्य अधिकारों के पुनर्स्थापना का वाद दायर किया जिसमें कोर्ट ने पत्नी को आदेश किया कि वह जाकर अपने पति के साथ रहे इसी मुकदमे के दौरान पत्नी ने अपना यह अपराधिक मुकदमा दर्ज कराया है ।
पति आगे बताता है की पत्नी ने जो भी आरोप लगाए हैं बेतुके आरोप लगाए हैं , फर्जी आरोप लगाए हैं उसके पास किसी प्रकार का कोई स्वतंत्र साक्षी नहीं है साथ ही साथ जो घटना उसने दिखाई है 24/05/2019 को दिखाइए है और उसके लिए प्रथम सूचना रिपोर्ट 06/09/2019 को दर्ज कराया है यह देरी क्यों हुई इसका भी उसने उचित कारण नहीं बताया है ।
पति उक्त आधारों पर अपना अपील स्वीकार कर उन्मोचित करने के लिए प्रार्थना करता है तथा पत्नी पक्ष की तरफ से उसके अपील को खारिज करने की मांग की जाती है ।
जब कोर्ट पूरे मामले को देखा है तो कोर्ट इस मामले में यही पता है कि जब पुलिस ने अपना छानबीन किया और आरोप पत्र दायर किया तो उसमें किसी प्रकार का पत्नी के पास कोई ऐसा मेडिकल साक्ष्य नहीं है जिससे साबित होता हो कि उसे जानकर करने का प्रयास किया गया हो नहीं उसके गले पर कोई चोट का निशान है । पत्नी ने यह कार्यवाही प्रतिशोध में और बदला लेने के लिए दर्ज कराई है ऐसे में यह मुकदमा चलाया जाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है और पति के द्वारा बताए गए उक्त आधार पर पति को उन्मोचित किया जाना न्याय हित में आवश्यक है और ऐसे में पति की अपील को उच्च न्यायालय स्वीकार करता है और पति को अनमोचित करता है ।
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