District Court से ही पत्नी का घरेलू हिंसा का मुकदमा खारिज हुआ

                       दिल्ली जिला न्यायालय 
   श्रीमती फहमीबा @ फहमीदा बनाम निजामुद्दीन



इस मामले में जो पत्नी होती है घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत धारा 12 में आवेदन करती है जिसे जिला न्यायालय में मजिस्ट्रेट के कोर्ट में ही इस आधार पर खारिज कर दिया जाता है की पत्नी ने जो आरोप लगाए थे उसे वह साबित नहीं कर पाई क्योंकि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत किसी भी महिला को अनुतोष पाने के लिए यह साबित करना पड़ता है कि उसके साथ हिंसा की गई है ।


इस मामले में जो पत्नी होती है घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत मुकदमा दायर करती है जिसमें वह आरोप लगती है कि विवाह के समय उसके घर वालों ने अपने हैसियत के मुताबिक दान दहेज दिया लेकिन जो पति और उसके घर वाले उससे संतुष्ट नहीं थे और बार-बार उसे दहेज के लिए प्रताड़ित करते थे इसके लिए उसे मार पीटे भी परेशान भी करते थे और उसे घर से निकाल दिया जिस कारण से उसने धारा 498A आईपीसी और अन्य धाराओं में एक आपराधिक प्रथम सूचना रिपोर्ट भी दर्ज कराया और प्रतिवादी ने दांपत्य अधिकारों के बहाली के लिए एक वाद भी  दायर किया है और प्रतिवादी उसे काफी प्रताड़ित करता था और भरण पोषण भी नहीं देता था  ।


पत्नी ने निवेदन किया कि उसके पास आएगा कोई स्रोत नहीं है और वह अपने भाई और घर वालों के ऊपर निर्भर है उसके पास रहने के लिए भी उचित स्थान नहीं है तो संरक्षण, निवास और भरण पोषण का आदेश उसके पक्ष में दिया जाए ।

पत्नी कहती है कि जो पति है वह काफी अमीर है उसके पास दो घर है और अच्छे पैसे भी कमाता है तो ऐसे में उसे ₹5000 प्रतिमाह भरण पोषण के रूप में दिया जाए ।


लिखित बयान में याचिका के आरोपों का खंडन किया गया है। यह कहा गया है कि प्रतिवादी 67 वर्षीय हृदय रोगी है और विभिन्न बीमारियों से पीड़ित है तथा अपनी आजीविका या दैनिक जरूरतों के लिए भी पैसे कमाने की स्थिति में नहीं है और अपने बच्चों की दया पर जी रहा है। यह कहा गया है कि पक्षों के बीच विवाह एक साधारण विवाह था और यह पक्षों के बीच एक मौखिक अनुबंध था क्योंकि विवाह के समय प्रतिवादी की आयु 62 वर्ष थी और याचिकाकर्ता की आयु 40 वर्ष थी क्योंकि प्रतिवादी की पिछली पत्नी की मृत्यु हो गई थी और प्रतिवादी के 13 बच्चे थे और उनमें से पांच पागल हैं। विवाह के समय याचिकाकर्ता प्रतिवादी और उसके पागल बच्चों की देखभाल करने के लिए सहमत हुआ था।

9. यह भी कहा गया है कि यह प्रतिवादी की अपनी पिछली पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरी शादी है और दोनों पक्षों के बीच विवाह से पहले याचिकाकर्ता को सभी तथ्य बता दिए गए थे। यह कहा गया है कि यह विवाह केवल याचिकाकर्ता की इस प्रतिबद्धता पर हुआ था कि वह सभी वैवाहिक कर्तव्यों को पूरा करेगी और अब याचिकाकर्ता अपनी प्रतिबद्धताओं से पीछे हट रही है और प्रतिवादी को छोड़ने की कोशिश कर रही है। यह कहा गया है कि याचिकाकर्ता शादी से पहले सिलाई का काम करती थी और उसने काफी पैसे जमा कर लिए थे। याचिकाकर्ता खुद भी ड्रग्स लेने में लिप्त थी और अपने वैवाहिक दायित्वों को पूरा करने से खुद को दूर रखती थी। यह कहा गया है कि शादी के कुछ महीनों बाद याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी और उसके बच्चों के लिए खाना बनाने और परोसने से इनकार करना शुरू कर दिया और प्रतिवादी को बताए बिना घर से बाहर रहती थी।



इस मामले में पति अन्य कुछ सबूत पेश करता है जिनके आधार पर कोर्ट अपना निष्कर्ष सुनता है ।


125 सीआरपीसी के मुकदमे में पत्नी ने जिरह में यह स्वीकार किया था कि उसने जो घर है वह अपनी मर्जी से छोड़ा है और वह अपने पति के साथ नहीं रहना चाहती है उसके पास पति के साथ रहने की कोई दिलचस्पी नहीं है वह अलग रहना चाहती है तो ऐसे में जब पत्नी खुद पति का घर छोड़कर के जा रही है और अलग रहना चाह रही है तो उसे भरण पोषण पानी का अधिकार भी नहीं है ना ही इस अधिनियम के तहत उसे निवास का आदेश दिया जा सकता है क्योंकि वह कारण ही अलग रहना शुरू कर दी है क्योंकि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम ऐसी महिलाओं के लिए बना है जिनके साथ क्रूरता की गई हो अगर कुर्ता साबित पत्नी नहीं कर पाती है तो इस अधिनियम के तहत उसे किसी प्रकार का कोई अनुतोष नहीं मिलेगा और यहां पति अपने सबूतों से साबित करता है कि उसने पत्नी के साथ कोई क्रूरता नहीं की है पत्नी अपनी मर्जी से पति का घर छोड़कर के चली गई है और साथ नहीं रहना चाहती है तो इस अधिनियम के तहत उसे किसी प्रकार का कोई लाभ नहीं मिलेगा और उसका आवेदन न्यायालय खारिज कर देता है ।


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