Bombay High Court
Kaushik Vs Sangeeta Kaushik
इस मामले में पत्नी मजिस्ट्रेट के समक्ष स्वयं के लिए और अपने दो बच्चों के लिए भरण पोषण का आवेदन घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत करती है । पूरा मुकदमा चलने के बाद पत्नी अपने आरोपों को साबित नहीं कर पाती है जिसकी वजह से मजिस्ट्रेट उसके आवेदन को खारिज कर देते हैं और आंशिक रूप से उसे अनुतोष देते हैं जिसमें पत्नी को भरण पोषण नहीं मिलता है सिर्फ दो बच्चों के लिए भरण पोषण का आदेश होता है ।
पति इस आदेश के विरुद्ध सेशन कोर्ट में अपील दायर करता है लेकिन उसके अपील को सत्र न्यायालय खारिज कर देता है ।
उसके बाद पति उच्च न्यायालय में अपील दायर करता है जिसमें पति यह पक्ष रखता है कि मजिस्ट्रेट के न्यायालय में पत्नी का मुकदमा इस वजह से खारिज किया गया और उसे भरण पोषण देने से मना किया गया की पत्नी अपने आरोपों को साबित नहीं कर पाई और उसकी आप गलत साबित हुए तो इस वजह से जब वह घरेलू हिंसा साबित नहीं कर पाई तो उसे अनुतोष नहीं मिलेगा तो ऐसे में जब पत्नी का कारण अलग रह रही है और साथ में बच्चों को भी अलग रख रही है तो उसे या बच्चों को किसी को अनुतोष नहीं मिलना चाहिए ।
जब कोर्ट पूरे मामले को देखा है तो कोर्ट इसमें यही कहता है कि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत व्यथित व्यक्ति के बच्चों के लिए भरण पोषण का आवेदन किया गया है लेकिन सिर्फ व्यथित के लिए किया गया है तो व्यथित उसे ही माना जा सकता है जो घरेलू हिंसा को साबित कर पाए तो ऐसे में पत्नी घरेलू हिंसा साबित नहीं कर पा रही है तो उसे व्यथित नहीं माना जा सकता और इस कानून के तहत उसे कोई अनुतोष नहीं मिलेगा तो जब पत्नी ही व्यतीत नहीं है तो ऐसे में उसके बच्चों के लिए भरण पोषण का आदेश कानून के तहत नहीं किया जा सकता और बच्चों के भरण पोषण को भी उच्च न्यायालय बंद कर देता है।
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