शादी के पहले की मानसिक बीमारी को अपने साथी से शादी के समय छुपाना एक धोखाधड़ी है यह कह कर दिल्ली उच्च न्यायालय ने 16 साल पुरानी शादी को रद्द कर दिया ।
खंडपीठ ने यह भी कहा कि इतनी लंबी प्रक्रिया के परिणाम स्वरुप पति का जीवन बर्बाद हो गया था और वह 16 साल तक बिना किसी मतलब के रिश्ते में फंसा रहा जिससे उसने अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय जिसमें वह वैवाहिक सुखों का आनंद लेता उसे गंवा दिया ।
क्या है पूरा मामला - अदालत एक अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें पारिवारिक न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12 के तहत एक शुन्यकरणी विवाह के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया था।
मामले में याचिकाकर्ता का दावा था कि उसका विवाह से 2005 में हुआ था । जब विवाह हुआ था तो उस समय एक्यूट सिजोफ्रेनिया जो कि एक मानसिक बीमारी होती है उससे उसकी पत्नी पीड़ित थी लेकिन यह बात उसके ससुराल वालों ने और उसकी पत्नी ने उससे छुपा लिया और उससे धोखे में रख कर शादी किया ।
याचिकाकर्ता पति ने आगे बताया कि उसने अपने वैवाहिक घर में रहने और अपने हनीमून के दौरान अपनी पत्नी के कई असामान्य हरकतें देखी जिसकी वजह से उसे यह प्रतीत हुआ कि उसकी पत्नी को कोई गंभीर मानसिक बीमारी है।
फिर वह अपने पत्नी को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ( AIIMS ) में न्यूरोसाइकियाट्रिस्ट सहित अन्य कई डॉक्टरों से दिखाया जहां रिपोर्ट में उसे पत्नी के गंभीर मानसिक बीमारी के बारे में पता चला और पत्नी का दवा इलाज कराना भी शुरू किया ।
जब याचिकाकर्ता को सारी बातें पता चल गई उसके बाद शादी के ठीक 9 हफ्ते बाद पत्नी को मायके ले गया।
पत्नी की तरफ से यह दावा किया गया की वह किसी भी मानसिक बीमारी से पीड़ित नहीं है और उसने बताया कि कालेज के दिनों में उसे सिर दर्द रहता था जिसके कारण उसने अपनी पढ़ाई बंद कर दी थी और यह समस्या पति और पति के घर वालों को बताया गया था ।
फिर न्यायालय ने अपने फैसले में कहा की पत्नी की जांच रिपोर्ट में यह साफ आया है कि वह एक्यूट सिजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारी से पीड़ित है ।
और कोर्ट ने यह भी कहा कि पति और पत्नी 9 सप्ताह से अधिक समय तक साथ नहीं रहे हैं और पत्नी का मानसिक विकार इस तरह का है कि वह शादी को निभा पाने और बच्चा पैदा करने के लिए अनुपयुक्त है।
पीठ ने यह कहा कि शादी के पहले से ही पत्नी मानसिक बीमारी से पीड़ित थी जो कि एक गंभीर बीमारी है और पति और पति के घर वालों को इस बीमारी के बारे में सूचना नहीं दी गई उन्हें धोखे में रखा गया सिर्फ उन्हें सिरदर्द बताया गया और इस बीमारी को सिर दर्द से तुलना किया जाना सरासर गलत है।
और फिर न्यायालय ने आदेश किया की पति की जो अपील है उसे स्वीकार किया जाता है और शादी को भी रद्द किया जाता है और साथ ही साथ कास्ट के रूप में 10000₹ भी पति के लिये मंजूर किए ।
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