प्रश्न -
1:-मेरी पत्नी ने मेरे अलावा मेरे
माता पिता का नाम घरेलू हिंसा के
केस में डाल दिया है क्या हमारा
इस केस में गिरफ्तारी होगी और
क्या जमानत ही कराना होगा ?
अनुराग, मध्यप्रदेश
2:- घरेलू हिंसा अधिनियम
3:- Domestic Violence Act
जबाब :-
महिलाओ की कमजोर स्थिति को देखते हुए उनके उत्थान के लिए कई कानून बनाए गए हैं उसी में से एक कानून है घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 यह कानून महिलाओं के संरक्षण के लिए बनाया गया है । यह एक ऐसा कानून है जिसमें महिलाओं को प्रभावी और शीघ्र संरक्षण प्राप्त होता है । जब किसी महिला पर उसके कोई रिश्तेदार या साथ रहने वाले लोग जरूरी नहीं कि पति ही हो अगर वह किसी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में है या कोई रिश्तेदार के साथ रह रही है और उस महिला के साथ हिंसा करते हैं चाहे वह हिंसा शारीरिक हिंसा हो अथवा मानसिक हिंसा , तो जिस महिला के साथ हिंसा हो रही है वह इस कानून के तहत शिकायत दर्ज कराकर संरक्षण या अनुतोष प्राप्त कर सकती है ।
इस कानून को लेकर लोगों के मन में एक भ्रम होता है कि जब कोई महिला घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत अपना केस न्यायालय में दर्ज कराती है उसके बाद विपक्षी जब कोर्ट में हाजिर होता है तो उसकी गिरफ्तारी होती है और फिर उसको जमानत कराना होता है लेकिन इस कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं होता है ।
इसमें कोर्ट में हाजिर होने के बाद किसी प्रकार की कोई जमानत नहीं करानी होती है, यह कानून अर्थ सिविल प्रकृति का होता है ।
जब महिला न्यायालय में परिवाद दाखिल करती है और उसमें पति के अलावा उसके घरवालों के नाम भी डाल देती है तो कोर्ट की तरफ से सभी आरोपियों को नोटिस भेजा जाता है और फिर आरोपी को अन्य अपराधिक मुकदमे की भांति कोर्ट में हाजिर होने के बाद जमानत नहीं करानी होती है बल्कि कोर्ट में हाजिर होने के बाद अपनी जवाबदेही देनी होती है । विपक्षी के तरफ से उसका वकील न्यायालय में जवाब दे ही देता है फिर न्यायालय की प्रक्रिया आगे बढ़ती है ।
लोगों के मन में ऐसा भ्रम क्यों होता है की घरेलू हिंसा अधिनियम में कोर्ट में हाजिर होने के बाद गिरफ्तारी होती है और जमानत कराना होता है :-
लोग भ्रमित भारतीय दंड संहिता की धारा 498a और Domestic Violence की वजह से हो जाते हैं ।
498a एक आपराधिक मुकदमा है और इसमें गिरफ्तारी और जमानत होती है, जबकि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम एक अर्थ सिविल मुकदमा होता है और इसमें 498A की भांति गिरफ्तारी और जमानत नहीं होती है बल्कि कोर्ट में हाजिर होने के बाद सबसे पहले विपक्षी को अपना जवाबदेही देनी होती है।
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